Friday, June 11, 2021

राम प्रसाद तोमर(राम प्रसाद बिस्मिल)

Ram Prasad Singh Tomar(Ram Prasad Bismil)

प. रामप्रसाद बिस्मिल जी का वास्तविक नाम रामप्रसाद सिंह तोमर था घर पर इनको प्यार से रामसिंह भी बोलते थे, वो कई भाषाओं के जानकार थे, उन्होंने कई कविताएँ भी लिखी, वो वेदों और उपनिषदों के ज्ञाता थे जिसके कारण उन्हे पंडित जी बोलते थे।


रामप्रसाद बिस्मल के दादा जी मूल रुप से ग्वालियर राज्य से थे। बिस्मिल के दादा जी ठाकुर नारायण सिंह तोमर का पैतृक गांव बरबाई था। यह गांव तत्कालीन ग्वालियर राज्य में चम्बल नदी के बीहड़ों के बीच स्थित तोमरघार क्षेत्र के मुरैना जिले में था और वर्तमान में यह मध्य प्रदेश में है। यहां के निवासी निर्भीक, साहसी और अंग्रेजों से सीधे रुप से चुनौती देने वाले थे। यहां लोगों का जब मन करता वो अपनी बन्दूकें लेकर नदी पार करके उस क्षेत्र के ब्रिटिश अधिकारियों को धमकी देकर वापस अपने गांव लौट आते। रामप्रसाद में भी यहीं का पैतृक खून था जिसका प्रमाण उन्होंने अंग्रेजों के खिलाफ क्रान्तिकारी गतिविधियों को कार्यान्वित करके दिया। बिस्मिल के दादाजी नारायणसिंह को पारिवारिक झगड़ों के कारण अपना गांव छोड़ना पड़ा। नारायण सिंह अपने दोनों पुत्रों मुरलीधर सिंह (बिस्मिल के पिता) और कल्याणमल सिंह को लेकर शाहजहांपुर आ गए थे।
इनके दादाजी ने शाहजहांपुर आकर एक दवा बेचने वाले की दुकान पर 3 रुपए महीने की नौकरी की। नारायण सिंह के यहां आने के समय इस क्षेत्र में भीषण अकाल पड़ रहा था। इनकी दादी ने आर्थिक तंगी को दूर करने के लिए घरों में जाकर पिसाई का काम करना शुरु कर दिया। इनके परिवार ने मुसीबतों का सामना करके अनेक कष्टों के बाद स्वंय को स्थापित करके समाज में अपनी प्रतिष्ठित जगह बनाई। इनके दादाजी ने कुछ समय बाद नौकरी छोड़कर पैसे, दुअन्नी, चवन्नी आदि बेचने की दुकान शुरु कर दी जिससे अच्छी आमदनी होने लगी। नारायणसिंह ने अपने बड़े बेटे को थोड़ी बहुत शिक्षा दिला दी और जी-जान से मेहनत करके एक मकान भी खरीद लिया। बिस्मिल के पिता, मुरलीधर सिंह के विवाह योग्य होने पर इनकी दादी ने अपने मायके में इनका विवाह करा दिया। मुरलीधर सिंह अपने परिवार के साथ कुछ समय अपने ननिहाल में रहने के बाद अपने परिवार और पत्नि को विदा करा कर शाहजहांपुर आ गए।
शाहजहांपुर शहर के खिरनीबाग मुहल्ले में मुरलीधर सिंह उनकी पत्नी मूलमती को जन्मे बिस्मिल अपने माता-पिता की दूसरी सन्तान थे। उनसे पूर्व एक पुत्र पैदा होते ही मर चुका था। बालक की जन्म-कुण्डली व दोनों हाथ की दसो अंगुलियों में चक्र के निशान देखकर एक ज्योतिषी ने भविष्यवाणी की थी - 'यदि इस बालक का जीवन किसी प्रकार बचा रहा, यद्यपि सम्भावना बहुत कम है, तो इसे चक्रवर्ती सम्राट बनने से दुनिया की कोई भी ताकत रोक नहीं पायेगी।'

माता-पिता दोनों ही सिंह राशि के थे और बच्चा भी सिंह-शावक जैसा लगता था तो ज्योतिषियों ने बहुत सोच विचार कर तुला राशि के नाम का अक्षर र पर नाम रखने का सुझाव दिया। माता-पिता दोनों ही राम के आराधक थे इसलिए बालक का नाम रामप्रसाद सिंह रखा गया। मां मूलमती तो सदैव यही कहती थीं कि उन्हें राम जैसा पुत्र चाहिए था। बालक को घर में सभी लोग प्यार से राम कहकर ही पुकारते थे। रामप्रसाद के जन्म से पूर्व उनकी मां एक पुत्र खो चुकी थीं। इसलिए जादू-टोने का सहारा भी लिया गया। एक खरगोश लाया गया और नवजात शिशु के ऊपर से उतार कर आंगन में छोड़ दिया गया। खरगोश ने आंगन के दो-चार चक्कर लगाए और फौरन मर गया। इसका उल्लेख राम प्रसाद बिस्मिल ने अपनी आत्मकथा में किया।


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